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सारण के गड़खा विधानसभा का सफर; मतदाताओं ने हमेशा दिल की सुनी, दल की नहीं, दो बार निर्दलियों की जीत

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发表于 2025-10-28 08:41:13 | 显示全部楼层 |阅读模式
  मतदाताओं ने हमेशा दिल की सुनी, दल की नहीं





पवन सिंह, गड़खा (सारण)। गड़खा विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास उतार-चढ़ाव और दिलचस्प समीकरणों से भरा रहा है। यहां के मतदाताओं ने हमेशा अपनी सोच और पसंद को प्राथमिकता दी है, कभी भी किसी पार्टी या गठबंधन के दबाव में नहीं आए। यही वजह रही कि इस सीट पर किसी एक दल का दबदबा लंबे समय तक कायम नहीं रह सका। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

कांग्रेस, एसएसपी, जनता पार्टी, राजद और बीजेपी सभी ने यहां जीत का स्वाद चखा है। यहां तक कि दो-दो बार निर्दलीय उम्मीदवार भी जनता का भरोसा जीतकर विधानसभा तक पहुंचे।




आज़ादी के बाद की शुरुआत

1952 में गड़खा दो सदस्यीय सीट हुआ करती थी। उस समय प्रभुनाथ सिंह और जगलाल चौधरी चुने गए। 1957 में एसएसपी के रामजयपाल सिंह यादव ने कांग्रेस प्रत्याशी विश्वनाथ मिश्र को पराजित किया। लेकिन 1962 में कांग्रेस ने वापसी की और शिवशंकर प्रसाद सिंह विजयी हुए। 1967 का चुनाव महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि तब यह सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। इस बार एसएसपी के विश्वनाथ भगत ने जीत दर्ज की। हालांकि 1969 में कांग्रेस के जगलाल चौधरी ने पलटवार करते हुए भगत को शिकस्त दी।





बदलते समीकरण और नए चेहरे

1972 में कांग्रेस के रघुनंदन मांझी विजयी रहे। 1977 के आपातकाल के बाद जनता पार्टी की लहर में मुनेश्वर चौधरी पहली बार विधायक बने। 1980 और 1985 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और रघुनंदन मांझी ने लगातार दो बार जीत हासिल की। 1990 में राजनीतिक माहौल बदला और मुनेश्वर चौधरी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जनता का विश्वास जीतने में सफल रहे। इसके बाद उन्होंने 1995 में जनता दल से और 2000 में राजद से चुनाव जीतकर अपनी ताकत साबित की।





पांच बार विधानसभा पहुंचे मुनेश्वर चौधरी

गड़खा की राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा निस्संदेह मुनेश्वर चौधरी रहे हैं। वे पांच बार यहां से विधायक बने। 2015 में वे महागठबंधन की ओर से राजद प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीते और एक बार फिर अपनी लोकप्रियता साबित की।


हाल के वर्षों में बदला समीकरण

2005 और 2010 के चुनाव में एनडीए प्रत्याशी ज्ञानचंद मांझी ने लगातार जीत दर्ज की। लेकिन 2020 में जनता का रुझान फिर बदला और राजद उम्मीदवार सुरेंद्र राम ने सीट पर कब्जा जमाया।




गड़खा का चुनावी सफर (संक्षेप में)

  • 1952: प्रभुनाथ सिंह, जगलाल चौधरी (कांग्रेस प्रभाव)

  • 1957: रामजयपाल सिंह यादव (पीएसपी)
  • 1962: शिवशंकर प्रसाद सिंह (कांग्रेस)

  • 1967: विश्वनाथ भगत (निर्दलीय)

  • 1969: जगलाल चौधरी (कांग्रेस)

  • 1972: रघुनंदन मांझी (कांग्रेस)

  • 1977: मुनेश्वर चौधरी (जनता पार्टी)

  • 1980: रघुनंदन मांझी (कांग्रेस)

  • 1985: रघुनंदन मांझी (कांग्रेस)

  • 1990: मुनेश्वर चौधरी (निर्दलीय)

  • 1995: मुनेश्वर चौधरी (जनता दल)

  • 2000: मुनेश्वर चौधरी (राजद)

  • 2005: ज्ञानचंद मांझी (एनडीए)

  • 2010: ज्ञानचंद मांझी (एनडीए)

  • 2015: मुनेश्वर चौधरी (राजद- महागठबंधन)
  • 2020: सुरेंद्र राम (राजद)
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