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पित्तशमन के लिए विरेचन कर्म और रक्तदोष के लिए रक्तमोक्षण विशेष लाभकारी हैं।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। आयुर्वेद के अनुसार वर्ष को छह ऋतुओं में बाँटा गया है - वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, और शिशिर। इनमें से शरद ऋतु (Sharad Ritu) वर्षा ऋतु के बाद और हेमंत ऋतु से पहले आती है। यह समय लगभग सितंबर के मध्य से नवंबर के मध्य (भाद्रपद शुक्ल पक्ष से कार्तिक शुक्ल पक्ष) तक माना जाता है। इस ऋतु में प्रकृति शांत, आकाश निर्मल, सूर्यप्रकाश तीव्र और चंद्रमा का प्रकाश शीतल होता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
आयुर्वेद विशेषज्ञ डा. अजय गुप्ता ने इस बाबत विशेष जानकारी साझा कर बताया कि सेहत को ठंड में दुरुस्त रखने के लिए कुछ उपाय अपनाए जा सकते हैं। इससे आने वाली ठंडियों में सेहत को बनाए और बचाए रखने में सहूलियत मिलेगी।
- ऋतु का स्वरूप (Nature of Sharad Ritu)
आकाश निर्मल और स्वच्छ होता है।
सूर्य की किरणें तीव्र होती हैं, जिससे वातावरण में हल्की गर्मी रहती है।
रातें अपेक्षाकृत ठंडी और दिन गर्म रहते हैं।
जलाशयों में कमल खिलते हैं और प्रकृति सुंदर दिखाई देती है।
दोष स्थिति (Dosha Status)
आयुर्वेद के अनुसार हर ऋतु में शरीर के दोषों की स्थिति बदलती रहती है। शरद ऋतु में पित्त दोष का प्रकोप होने के कारण सामान्य रूप से त्वचा रोग, रक्तदोष, जलन, प्यास, अम्लपित्त आदि उत्पन्न होते है।
शरद ऋतु में सामान्य रोग - (Diseases Common in Sharad Ritu)
- पित्तजन्य ज्वर (फीवर)
- त्वचा रोग (Skin diseases)
- पित्तज वमन, उल्टी, दस्त
- अम्लपित्त (Acidity, gastritis)
- कामला (Jaundice)
- रक्तदोष, फोड़े-फुंसी, खुजली
- आँखों की जलन, लालिमा
ऋतुचर्या (Regimen for Sharad Ritu)
आयुर्वेद में ऋतु के अनुसार आहार, विहार और दिनचर्या बदलने की सलाह दी गई है, जिससे शरीर में दोषों का संतुलन बना रहे।
आहार (Diet)- सेवन योग्य आहार
- शीतल, मधुर, तिक्त, कषाय रस वाले पदार्थ
- जौ, गेंहूँ, चावल, मूँग, तोरई, परवल
- दूध, घी, नारियल जल, गन्ना रस, आमलकी
- सादा भोजन, मीठे फल (सेब, अंगूर)
विहार (Lifestyle / Activities)
- चंद्रमा की रोशनी में टहलना (शीतल प्रभाव देता है)
- धूप से बचना, हल्के कपड़े पहनना
- दिन में नींद से परहेज करना
- रात्रि में शीघ्र सोना और जल्दी उठना
- हल्का व्यायाम करना
- मानसिक शांति बनाए रखना
शोधन कर्म (Detoxification Practices)-
शरद ऋतु पित्तशमन और शोधन के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। इस समय निम्न क्रियाएँ विशेष लाभकारी हैं -
- विरेचन कर्म (Purgation Therapy): पित्त दोष शमन के लिए सर्वोत्तम
- रक्तमोक्षण (Bloodletting): रक्तदोष एवं त्वचा रोगों में उपयोगी
- त्रिफला सेवन: हल्का रेचक और रक्तशुद्धिकारक
- धात्री रस (आंवला रस): प्राकृतिक पित्तशामक
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