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हिमाचल प्रदेश: संजौली मस्जिद मामले में वक्फ बोर्ड को कोर्ट का झटका, अतिरिक्त समय देने से इन्कार, अब आएगा फैसला

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发表于 2025-10-28 08:43:12 | 显示全部楼层 |阅读模式
  जिला शिमला में संजौली मस्जिद का फाइल फोटो।





जागरण संवाददाता, शिमला। हिमाचल प्रदेश के संजौली मस्जिद मामले में वक्फ बोर्ड और मस्जिद कमेटी को जिला अदालत से सोमवार को कोई राहत नहीं मिली। दोनों ही पक्षों की ओर से संजौली मस्जिद के मामले में सोमवार को अतिरिक्त समय मांगा गया था। जिला अदालत ने इस मामले में समय देने से इंकार करते हुए फैसले को सुरक्षित रखा। 30 अक्टूबर को फैसला सुनाने के आदेश दे दिए हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

इस मामले में जिला अदालत में नगर निगम आयुक्त के फैसले को चुनौती दी गई है। इसमें आयुक्त कोर्ट ने संजौली की मस्जिद की निचली दो मंजिलों को भी अवैध करार दिया था। इन्हें तोड़ने के आदेश दिए थे। इस फैसले को मुस्लिम पक्ष की ओर से कोर्ट में चुनौती दी गई थी। हालांकि ऊपर की तीन मंजिलों को तोड़ने के आदेश पहले ही दिए जा चुके हैं।


नगर निगम आयुक्त ने तीन मई को दिया था मस्जिद गिराने का आदेश

इस मामले में नगर निगम आयुक्त भूपेंद्र अत्री के तीन मई को फैसला दिया था। इसे वक्फ बोर्ड ने चुनौती दी है। नगर निगम आयुक्त ने तीन मई को मस्जिद की निचली दो मंजिलें गिराने का आदेश दिया था। इस मसले पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है। इससे पहले मस्जिद की तीन मंजिलों को गिराने का फैसला पहले ही पिछले साल पांच अक्टूबर को सुनाया जा चुका है, इसमें से ऊपरी दो मंजिलों को गिराने का काम भी लगभग मस्जिद कमेटी ने पूरा कर दिया है।


क्या है संजौली मस्जिद मामला

शिमला के मतियाणा में युवकों की पिटाई के बाद संजौली मस्जिद विवाद उठा और हिंदू संगठनों ने प्रदर्शन किया। 11 सितंबर को संजौली मस्जिद कमेटी ने अवैध बताए जा रहे हिस्से को हटाने की पेशकश की थी। पांच अक्टूबर को नगर निगम आयुक्त की अदालत ने मस्जिद की तीन मंजिलें तोड़ने को मंजूरी दी।
वक्फ बोर्ड का तर्क

वक्फ बोर्ड का तर्क इस मामले में यह है कि इस जगह मस्जिद 1947 से पहले की थी। इसको तोड़कर बनाया गया। वहीं संजौली लोकल रेजिडेंट का तर्क्र ये रहा है कि यदि मस्जिद 1947 से पहले की थी तो पुरानी मस्जिद को तोड़कर नई बनाने के लिए नगर निगम से नक्शा सहित अन्य जरूरी अनुमति क्यों नहीं ली गई। वहीं वक्फ बोर्ड राजस्व दस्तावेज भी पूरी तरह से पेश नहीं कर पाया था। इसलिए निचली दो मंजिलों को भी अवैध बताते हुए आयुक्त कोर्ट ने पहले ही तोड़ने के आदेश दिए थे।



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