找回密码
 立即注册
搜索
查看: 693|回复: 0

5 साल बाद शुरू होगी भारत-चीन के बीच सीधी उड़ान, ट्रंप के डर से बदला ड्रैगन ने रुख या फिर कोई वजह?

[复制链接]

8万

主题

-651

回帖

24万

积分

论坛元老

积分
247136
发表于 2025-10-28 08:43:24 | 显示全部楼层 |阅读模式
  भारत से रिश्‍ते सुधारने की कोशिश में चीन। जागरण ग्राफिक्‍स





जागरण टीम, नई दिल्‍ली। विरोधाभासों से भरे रिश्ते साझा करने वाले भारत और चीन के रिश्तों में नई गर्माहट दिख रही है। करीब पांच वर्ष बाद 26 अक्टूबर से दोनों देशों के बीच सीधी उड़ान दोबारा शुरू होने जा रही है। साल 2020 में गलवन संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते हाल के दशकों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे। हालांकि, तनाव के बावजूद दोनों देशों ने बातचीत कभी बंद नहीं की और समय के साथ रिश्तों में जमी बर्फ पिघलनी शुरू हुई। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें



विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें एक बड़ी भूमिका वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य की भी है। अमेरिका में ट्रंप 2.0 कार्यकाल शुरू होने के बाद चीन दबाव में आया और उसने सही मायने में भारत से रिश्ते सुधारने में दिलचस्पी दिखाई।

हालांकि, पहले के अनुभव बताते हैं भारत के हितों के लिहाज से चीन और अमेरिका की नीतियां नकारात्मक रही हैं। ऐसे में इन पर भरोसा करना खतरों को न्योता देना है। भारत-चीन संबंधों में आई नई गर्मजोशी वैश्विक परिस्थितियों की उपज है या साझा हितों के आधार पर लंबी अवधि में सहयोग मजबूत करने की समझ बनी है, इसकी पड़ताल प्रासंगिक है...



  

वर्तमान वैश्विक परिदृश्य भारत और चीन दोनों देशों के लिए चुनौतीपूर्ण है। इसके पीछे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हैं। वह हर उस स्थापित वैश्विक व्यवस्था को ध्वस्त कर देना चाहते हैं, जिससे वह मनमाना फायदा नहीं उठा पा रहे हैं।

ट्रंप अपनी इन नीतियों में कितने सफल या असफल होंगे, यह समय बताएगा लेकिन इसने वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में भारी उथल-पुथल पैदा कर दी है।



चीन और भारत भी इससे बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं क्योंकि चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत की अर्थव्यवस्था का स्थान विश्व में चौथा है। भारत-चीन के संबंधों में सुधार के लिए ये फैक्टर भी अहम है।

हालांकि, यह कहना मुश्किल है कि करीब आठ दशक से सीमा विवाद में उलझे भारत और चीन कब तक शांति के साथ आर्थिक मोर्चे पर सहयोग बनाए रख पाएंगे।

  


निर्यात पर निर्भर है चीन की अर्थव्यवस्था

चीन की अर्थव्यवस्था बड़े पैमाने पर निर्यात पर निर्भर है। अगर ट्रंप टैरिफ की वजह से अमेरिका के बाजार में चीन का निर्यात कम होता है, तो इससे उसकी अर्थव्यवस्था को झटका लग सकता है। चीन अमेरिका को सालाना करीब 550 अरब डॉलर का निर्यात करता है।

अमेरिका के विकल्प के तौर पर दूसरे बाजार ढूंढना चीन के लिए आसान नहीं है क्योंकि अमेरिका की अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी है। ऐसे में चीन अपने नुकसान को कम करने के तरीके तलाश रहा है।



  

ट्रंप प्रशासन चीन के उभार को उस तरह से बर्दाश्त करने के मूड में नहीं दिख रहा है, जिस तरह से अमेरिका के पहले के राष्ट्रपतियों ने किया। आने वाले समय में भू-राजनीतिक मोर्चे पर भी चीन को अमेरिका के दबाव का सामना करना पड़ सकता है।

ऐसे में चीन भारत जैसे व्यापारिक सहयोगी के साथ सहयोग बढ़ा कर अपने आर्थिक हितों को साध सकता है और कुछ हद तक अपने लाभ को बढ़ा सकता है।


भारत के लिए अमेरिकी बाजार का विकल्प ढूंढना आसान नहीं

भारत की अर्थव्यवस्था खपत पर आधारित है। हालांकि, भारत की जीडीपी में निर्यात का योगदान करीब 21.8 प्रतिशत है। ट्रंप टैरिफ से भारत के निर्यात पर असर पड़ना तय है। अगर अगले कुछ महीनों में इस मोर्चे पर राहत नहीं मिलती है तो देश की अर्थव्यवस्था को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा।

  



केंद्र सरकार ने घरेलू खपत बढ़ाने के लिए जीएसटी 2.0 जैसे सुधार लागू किए गए हैं। आने वाले दिनों में इस तरह के और दूसरे कदम उठाए जा सकते हैं।

ऐसे में ट्रंप टैरिफ से अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान की एक हद तक भरपाई हो सकती है।  ऐसे में ट्रंप की नीतियां भारत के आर्थिक हितों के साथ रणनीतिक हितों के लिए भी चुनौतियां पैदा कर रहीं हैं।

  



यह भी पढ़ें- Trump Tariff: रूस-चीन से दोस्ती भी कारगर नहीं! आंकड़ों से जानें क्यों आसान नहीं होगा अमेरिका का तोड़ निकालना
您需要登录后才可以回帖 登录 | 立即注册

本版积分规则

Archiver|手机版|小黑屋|usdt交易

GMT+8, 2025-11-25 06:24 , Processed in 0.218599 second(s), 24 queries .

Powered by usdt cosino! X3.5

© 2001-2025 Bitcoin Casino

快速回复 返回顶部 返回列表