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बिहार चुनावों में चला सीएम योगी का जादू, 90 प्रतिशत स्ट्राइक रेट के सामने अखिलेश यादव हुए फेल

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बिहार चुनावों में चला सीएम योगी का जादू



डिजिटल डेस्क, लखनऊ। बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक स्पष्ट तस्वीर पेश कर दी है। इन चुनावों में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक बड़े \“विनर\“ बनकर उभरे हैं, जबकि समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव और अन्य यूपी आधारित दलों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। चुनावी नतीजों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार के मैदान में योगी आदित्यनाथ की आक्रामक और हिंदुत्व-केंद्रित चुनावी रणनीति के आगे अखिलेश यादव की कोशिशें कमजोर पड़ गईं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

योगी का 90 प्रतिशत स्ट्राइक रेट
भारतीय जनता पार्टी (NDA) के स्टार प्रचारक के रूप में सीएम योगी आदित्यनाथ की भूमिका बेहद प्रभावशाली रही। उन्होंने बिहार में कुल 31 चुनावी सभाएं और रैलियां कीं। इन सीटों में से 28 पर एनडीए गठबंधन ने शानदार जीत दर्ज की, जिससे योगी का स्ट्राइक रेट करीब 90 प्रतिशत रहा। योगी ने कानून-व्यवस्था, विकास और धार्मिक/सांस्कृतिक पहचान जैसे मुद्दों पर ज़ोर दिया और महागठबंधन (RJD-कांग्रेस) पर \“माफिया राज\“ और \“जंगल राज\“ वापस लाने का नैरेटिव सेट किया, जो जनता को खूब पसंद आया।

वहीं, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए 22 सीटों पर प्रचार किया, लेकिन उनके प्रचार वाली सीटों में से सिर्फ 2 पर ही जीत मिली। उनका स्ट्राइक रेट मात्र 9 फीसदी रहा। अखिलेश के प्रचार के बावजूद, भोजपुरी स्टार खेसारी लाल यादव जैसी सीटों पर भी महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती का प्रदर्शन भी कमजोर रहा।

\“पप्पू, टप्पू और अप्पू\“ विवाद ने मोड़ा चुनाव
चुनावी रणनीतिकारों का मानना है कि योगी आदित्यनाथ का \“तीन बंदर\“ वाला बयान चुनाव का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। योगी ने बिना नाम लिए राहुल गांधी, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव को \“पप्पू, टप्पू और अप्पू\“ कहकर गांधीजी के तीन बंदरों से तुलना की थी। इस बयान ने महागठबंधन को रोजगार और सुशासन जैसे अपने मूल मुद्दों से भटका दिया, और पूरा विपक्ष इसी विवाद में उलझा रहा, जिसका सीधा फायदा एनडीए को मिला।

राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक, योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह विरोधियों को व्यक्तिगत और भावनात्मक हमलों के जरिए डिफेंसिव मोड में लाकर चुनावी मैदान को अपने पक्ष में मोड़ा, यह रणनीति अब 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी दोहराई जा सकती है। बिहार के परिणामों ने यूपी के नेताओं के बीच शक्ति संतुलन को स्पष्ट कर दिया है, जहाँ योगी आदित्यनाथ ने अपनी लोकप्रियता और आक्रामक शैली का लोहा मनवाया है।
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