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विलुप्त हो रहे गिद्धोंं को बचाएगा जमुई, नागी में बनेगा देश का छठवां गिद्ध संरक्षण और प्रजनन केंद्र

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发表于 1 小时前 | 显示全部楼层 |阅读模式
  

जमुई में बनेगा गिद्ध संरक्षण केंद्र



डॉ. विभूति भूषण, जमुई। जिले के झाझा प्रखंड स्थित नागी में गिद्ध संरक्षण सह प्रजनन केंद्र की स्थापना की जाएगी। इसके लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने अंतिम रूप से स्वीकृति प्रदान कर दी है। इस केंद्र की स्थापना को लेकर स्थानीय स्तर पर कवायद तेज कर दी गई है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

जिला वन पदाधिकारी ने बताया कि इस वर्ष ठंड और गर्मी के मौसम के बीच में नागी जलाशय के आसपास के क्षेत्र के हिमालयन ग्रीफन, यानी हिमालयन गिद्ध, जो हल्के ठंडे प्रदेशों में पाया जाता है, उसका आगमन हुआ था। यह मूल रूप से नेपाल, भूटान और तिब्बत में पाया जाता है।

उसके बाद इस केंद्र की स्थापना को लेकर विभाग द्वारा स्थानीय स्तर पर निर्णय लिया गया, जिस पर विभाग द्वारा अंतिम मुहर लगा दी गई है। इंटरनेशनल यूनियन फाेर कंजर्वेशन आफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेस ने वर्ष 2018 में भारत में पाए जाने वाले सभी प्रजाति के गिद्ध को दुर्लभ और विलुप्त पक्षी का दर्जा दिया है।

भारतीय गिद्ध, लंबी चोंच वाला गिद्ध, इजिप्टियन गिद्ध, लंब्रगियर गिद्ध, यूरेशियन गिद्ध, लाल सिर वाला गिद्ध, सफेद पृष्ठभूमि वाला गिद्ध, स्लेंडर बिल्ड गिद्ध और सफेद गिद्ध समेत गिद्ध की नौ प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं।

सभी प्रजाति के गिद्ध मृत पशुओं का मांस खाते हैं। नागी में गिद्ध संरक्षण को लेकर आसपास के लोगों से बात की जा चुकी है और यहां पहुंचने वाले गिद्ध को स्थानीय लोगों के सहयोग से भोजन के रूप में मृत मवेशियों के किसी भी प्रकार के दर्द निवारक दवा के असर से मुक्त मांस उपलब्ध कराया जाएगा।

गिद्ध को मृत मवेशियों का मांस उपलब्ध कराने से पूर्व पशु चिकित्सक से उसकी जांच कराई जाएगी ताकि वह सुरक्षित भोजन कर सकें।
वर्ष 1999 के बाद इनकी संख्या हो गई है काफी कम

पक्षी विशेषज्ञ अरविंद कुमार मिश्रा ने बताया कि गिद्ध को प्रकृति का सफाई कर्मी कहा जाता है। यह मृत पशुओं के मांस को खाकर पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाता है। इनकी सबसे अधिक मौत मृत मवेशियों के शरीर में दर्द निवारक दवा का केमिकलयुक्त मांस खाने से हुई है।

इस वजह से लंबी चोंच वाला गिद्ध, सफेद पृष्ठभूमि वाला गिद्ध, भारतीय गिद्ध और स्लेंडर बिल्ड गिद्ध की मौत सर्वाधिक हुई है। मेडिकल रिसर्च में यह पाया गया है कि मृत मवेशियों के केमिकलयुक्त मांस का भोजन इनकी मौत की मुख्य वजह है।

यह मांस उनके किडनी को खराब कर देता है। वर्तमान समय में सरकार द्वारा मवेशियों को दिए जाने वाले कई प्रकार के दर्द निवारक दवा की बिक्री पर रोक लगा दी गई है।

गिद्ध एक वर्ष में एक अंडे देता है, जिस कारण इसकी वृद्धि काफी धीमी गति से होती है। पूरे देश में गिद्ध संरक्षण सह प्रजनन केंद्र का संचालन बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के तकनीकी सहयोग से किया जा रहा है।


इस केंद्र में गिद्ध का सही तरीके से संरक्षण करके उनके सुरक्षित प्रजनन की व्यवस्था की जाएगी ताकि उनका सही तरीके से वंश वृद्धि हो सके। उनके सुरक्षा और आवासन का भी समुचित प्रबंध किया जा रहा है। - तेजस जायसवाल, जिला वन पदाधिकारी, जमुई

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