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Republic Day 2026: कर्तव्य पथ पर दिखेगी जम्मू-कश्मीर की विरासत, हस्त शिल्प एवं लोक नृत्यों से रूबरू होगी देश-दुनिया

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发表于 4 小时前 | 显示全部楼层 |阅读模式
  

कर्तव्य पथ



जागरण संवाददाता, जम्मू। देश के अन्य प्रदेशों की तरह ही जम्मू-कश्मीर की भी अपनी अलग संस्कृति और विरासत है, जिससे रूबरू होने के लिए हर वर्ष बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं।

वहीं, प्रदेश की संस्कृति और विरासत का हर कोई कायल है, जिसका उदाहरण विजयपथ पर निकलने वाली गणतंत्र दिवस की झांकी से मिलता है। प्रदेश की झांकी तीन बार पहले और एक बार दूसरे स्थान पर रह चुकी है।

वहीं, इस बार सरकार फिर से उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए प्रयासरत है। इसी के तहत इस वर्ष कर्तव्य पथ पर जम्मू कश्मीर की झांकी में हस्त-शिल्प एवं लोक-नृत्यों की विरासत को दर्शाया जाएगा।

26 जनवरी को देश की राजधानी में होने वाले गणतंत्र दिवस समारोह में इस वर्ष जम्मू कश्मीर की झांकी को मौका मिलेगा और सरकार इस मौके को अपनी पहचान के रूप में स्थापित करने की दिशा में जोरशोर से जुटी है। इस वर्ष का थीम \“हस्त-शिल्प एवं लोक-नृत्य\“ है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

इस विषय को लेकर जम्मू-कश्मीर टेबलो कमेटी ने मुख्य सचिव अटल डुल्लु के नेतृत्व में झांकियां पेश करने के लिए टेंडर निकाले थे। प्रतिभागियों में से नटरंग की झांकी मुख्य सचिव के सामने प्रभाव छोड़ने में सफल रही।

इसके दो दौर हो चुके हैं और अभी तीन दौर दिल्ली में होने हैं। उसके बाद झांकी को स्वीकृति मिलेगी। पिछले वर्ष जम्मू-कश्मीर की झांकी को गणतंत्र दिवस परेड में मौका नहीं मिला था।

19 नवंबर को मुख्य सचिव और जम्मू-कश्मीर टेबलो कमेटी के सामने जिस झांकी को मंजूरी मिली है उस प्रस्तुति में जम्मू एवं कश्मीर की शिल्प परंपराओं, जटिल लकड़ी की नक्काशी, प्रसिद्ध पश्मीना बुनाई, पेपरमच्छी, धातु कारविंग, कालीन-बुनाई और दुनिया भर में ख्याति प्राप्त बसोहली चित्रकला को प्रमुखता दी गई है।

झांकी की रूपरेखा में जम्मू-क्रमीर के शिल्पों, मिनिएचर इंस्टालेशन और पारंपरिक उपकरणों के साथ रचा गया है, ताकि दर्शक महसूस कर सकें कि किस तरह ये कलाएं समय-समय पर निखरती गई।
लोक नृत्य भी झांकी का हिस्सा

कला की तरह लोक नृत्य भी इस झांकी का अभिन्न हिस्सा हैं। जम्मू क्षेत्र के कुड, गीतडू और कश्मीर के रौफ जैसे नृत्य रूपों को मंच मिलेगा। झांकी की सजाबट के दौरान सिर्फ सांस्कृतिक सुंदरता ही नहीं, बल्कि पर्यावरण जिम्मेदारी को भी प्रमुखता दी जाएगी।

साथ ही यह तय किया गया है कि टेबलो में शामिल सभी कलाकार एवं प्रदर्शनकर्ता जम्मू-कश्मीर के ही रहने वाले होंगे, जिसका मकसद अपने-अपने क्षेत्र की कलात्मक कीर्ति को देश स्तर पर गर्व से उजागर करना है।

जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी की यह झांकी जम्मू-कश्मीर की अनदेखी लेकिन समृद्ध शिल्प-परंपराओं को मुख्यधारा में लाएगा और राष्ट्रीय मंच पर उनकी पहचान बढ़ाएगा।

लोक-नृत्य एवं शिल्प की यह जोड़ी दर्शकों को सिर्फ चित्र या प्रदर्शन नहीं दिखाएगी, बल्कि संवेदनशील अनुभव देगी। पर्यावरण मूलक निर्माण से यह कदम आधुनिक समय की जरूरतों के अनुरूप भी है, जिसे संस्कृति प्रेम एवं जिम्मेदारी दोनों से जोड़ा गया है। सबसे खास बात यह है कि अपनी-अपनी जमीनी संस्कृति के कलाकारों को अवसर मिलेगा।
हैट्रिक के साथ चार बार झांकी को मिला पहला स्थान

इससे पहले जम्मू कश्मीर की झांकी वर्ष 1997, 1998, 1999 में लगातार तीन बार पहला स्थान अर्जित कर हैट्रिक बना चुका है। इसके अलावा 2001 में पहला और वर्ष 2003 में दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था। उस समय पद्मश्री बलवंत ठाकुर जम्मू-कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के सचिव थे। इस वर्ष की झांकी तैयार करने का टेंडर उन्हीं को मिला है।

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