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Bihar News: पहाड़ का सीना चीर लिखी हरियाली की कहानी, झारखंड तक पहुंच रही अमरूद की खुशबू

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发表于 13 小时前 | 显示全部楼层 |阅读模式
  

बगान में अमरूद की पैकिंग करते मजदूर। (जागरण)



शुभम कुमार सिंह, औरंगाबाद। पत्थर पर दूब जमाने वाली कहावत बचपन से सुनते आए हैं। इस कहावत को पहड़तली इलाके में चरितार्थ किया है यहां के पांच किसानों ने।

पत्थर पर पेड़ लगाकर आमदनी कर रहे हैं। औरंगाबाद के अमरूद की महक दूर तक फैला रहे हैं। औरंगाबाद के देव प्रखंड के दुलारे पंचायत स्थित दुर्गी गांव के पास पहाड़तली इलाके में जो पांच-छह वर्ष पहले तक मरुस्थल था वहां पहाड़ का सीना चीरकर हरियाली की कहानी लिख दिए है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

बंजर पड़ी जमीन पर मेहनत की बदौलत वर्ष 2019 में अमरूद की खेती शुरू की। 150 एकड़ में अमरूद की खेती किया है जिसकी महक बिहार से लेकर झारखंड तक फैली है।
पांच किसानों ने प्रारंभ की खेती

कुटुंबा प्रखंड के दधपा बिगहा निवासी किसान नरेश मेहता, विश्वनाथ कुमार, संजय कुमार, राजेंद्र वर्मा एवं ब्रजेश कुमार ने देव प्रखंड के दुलारे पंचायत स्थित दुर्गी गांव के पास अमरूद की खेती प्रारंभ की। करीब 150 एकड़ में किसानों ने अमरूद की संगठित खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत की है।

औरंगाबाद को फल उत्पादन के क्षेत्र में नई पहचान दिलाया है। हरे-भरे बागानों के बीच फैली अमरूद की खुशबू आसपास के गांवों के माहौल को प्राकृतिक सुगंध दे रही है।
किसानों ने बदला खेती का पैटर्न

कई वर्षों तक परंपरागत धान, गेहूं और दालों की खेती करने वाले किसानों ने बदलते मौसम, लागत और घटते मुनाफे को देखते हुए अमरूद को एक नए विकल्प के रूप में अपनाया। कृषि विभाग द्वारा दी गई तकनीकी सलाह और बागवानी योजना के तहत सब्सिडी मिलने से किसानों ने धीरे-धीरे बड़े पैमाने पर अमरूद के पौधे लगाने शुरू किए।

आज स्थिति यह है कि सिर्फ कुछ गांवों तक सीमित रहने वाली यह खेती विस्तारित हो चुकी है। खेत में ताइवान पिंक, वीएनआरवीई, थाई, इलाहाबाद सफेदा समेत कई अन्य उन्नत किस्मों के पौधे लगाए गए हैं जो अधिक उत्पादन और बेहतर स्वाद के लिए प्रसिद्ध हैं।
7,000 किलो प्रतिदिन हो रहा निर्यात

औरंगाबाद के अमरूद की मांग स्थानीय बाजारों के साथ गया, पटना, भागलपुर, रोहतास, कैमूर के अलावा झारखंड के कई शहरों से आती है। उन्नत किस्मों के कारण यह अमरूद लंबे समय तक ताजा रहता है और आकार में बड़े होने के कारण मंडियों में अच्छी कीमत प्राप्त होती है।

किसानों का कहना है कि वर्तमान में करीब 7,000 किलो प्रतिदिन अमरूद का निर्यात किया जा रहा है। पहले पारंपरिक खेती में जहां मौसम पर अत्यधिक निर्भर रहकर मुश्किल से लागत निकल पाती थी, वहीं अमरूद की खेती ने उनकी आय काफी बेहतर हो गई है। प्रति एकड़ किसानों को डेढ़ से दो लाख रुपये की आमदनी होती है।
रोजगार का नए स्रोत

अमरूद की खेती ने स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा किए हैं। पौधों की देखभाल, सिंचाई, कटाई-छंटाई और पैकिंग के लिए ग्रामीणों को सीजन के अनुसार काम मिल रहा है।

महिलाओं की बड़ी संख्या भी इस काम से जुड़ रही है और परिवार की आमदनी में योगदान दे रही है। खेती में करीब 40 से 50 मजदूरों को रोजगार मिला है। इसके अलावा कई किसान ड्रिप इरिगेशन और मल्चिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर जल संरक्षण के साथ अधिक उत्पादन प्राप्त कर रहे हैं।


दुलारे पंचायत के ग्रामीण इलाका अमरूद की खुशबू से महक रहा है। 150 एकड़ में फैले इन बागानों ने किसानों की किस्मत बदली है और पूरे क्षेत्र को एक नई पहचान दी है। आने वाले समय में अमरूद की बढ़ती मांग और सरकारी सहयोग से यह क्षेत्र राज्य के प्रमुख फल उत्पादक जिलों में शुमार हो सकता है।
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- बीजेंद्र यादव, मुखिया ग्राम पंचायत दुलारे


अमरूद की खेती से किसानों को लाभ हो रहा है। जहां खेती हो रहा है वहां ड्रिप बोरिंग किया गया है। चार कलस्टर लगवाया गया है। प्रति एकड़ 65 हजार रुपये अनुदान दिया गया है। किसान बेहतर खेती कर रहे हैं। विभाग बागवानी को बढ़ावा देने में सहयोग कर रहा है।
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- डॉ. श्रीकांत, जिला उद्यान पदाधिकारी औरंगाबाद।

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