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सालाना छह मिलीमीटर तक खिसक रहा उत्तराखंड का एक हिस्सा, भविष्य में बड़े भू-स्खलन और आपदा की आशंका

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发表于 1 小时前 | 显示全部楼层 |阅读模式
  

सालाना छह मिलीमीटर तक खिसक रहा उत्तराखंड का एक हिस्सा।



सुमन सेमवाल, देहरादून। उत्तराखंड के एक बड़े हिस्से पर आपदा का खतरा निरंतर बढ़ता जा रहा है। गढ़वाल हिमालय में ऐतिहासिक फाल्ट मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) के आसपास की पहाड़ियां लगातार खिसक रही हैं। यह धीमी खिसकन भविष्य में बड़े भूस्खलन और आपदा में बदल सकती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

यह चौंकाने वाली जानकारी स्पेस-बेस्ड एसएआर (सिंथेटिक अपर्चर रेडार) इमेजेस के विश्लेषण पर आधारित नवीनतम विज्ञानी अध्ययन में सामने आई। जिसमें साफ किया गया कि भागीरथी घाटी के भटवाड़ी, नतिन, रैथल और बार्सू गांव की जमीन हिमालय से अलग दिशा में नीचे की तरफ खिसक रही है।

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, एकेडमी ऑफ साइंटिफिक एंड इनोवेटिव रिसर्च (गाजियाबाद) और सिक्किम विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने संयुक्त रूप से सेंटिनल-1 उपग्रह के 129 डेटा सीन का विश्लेषण (जनवरी 2021 से मार्च 2025) किया।

अध्ययन में संबंधित क्षेत्रों की जमीन की ऊपर-नीचे व दाएं-बाएं दिशा में गति को मापा। पाया गया कि रैथल (ऊंचाई 2150 मी) सालाना 03 मिमी धंस रहा है, जबकि 05 मिमी पूर्व की ओर खिसक रहा है।

इसी तरह भटवाड़ी (ऊंचाई 1650 मी.) 04 मिमी पूर्व की तरफ खिसक रहा है और 02 मिमी उठ रहा है। 2262 मीटर ऊंचाई पर स्थित बार्सू में हालात और विकट नजर आते हैं। यह क्षेत्र पूर्व की तरफ 06 मिमी सालाना खिसक रहा है और 03 मिमी धंस रहा है।
विज्ञानियों ने खामोश आपदा दिया नाम

विज्ञानियों के अनुसार यह खिसकन साइलेंट डिजास्टर (खामोश आपदा) है। मतलब यह रोज दिखाई नहीं देती, लेकिन जमीन अंदर ही अंदर कमजोर हो रही है। इसके खतरनाक परिणाम बड़े भूस्खलन की आशंका के रूप में नजर आ सकते हैं। क्योंकि, लगातार दरारें बढ़ रही हैं।

रास्तों में टूट-फूट हो रही है और घरों की नींव कमजोर पड़ रही है। गंभीर यह कि भूकंप के दौरान बड़ा हिस्सा ढलान की तरफ खिसक सकता है या भागीरथी नदी के अवरुद्ध होने का खतरा भी बढ़ सकता है।
ईको सेंसेटिव जोन की अवधारणा को बल

भागीरथी घाटी को भारत सरकार ने वर्ष 2012 में ही इको-सेंसिटिव जोन घोषित कर दिया था। नया अध्ययन पुष्टि करता है कि यह घाटी आज भी अत्यधिक भू-संवेदनशील है। यदि बरसात या भूकंप के दौरान भूस्खलन हुआ तो बड़ा नुकसान हो सकता है।

लिहाजा, सेटेलाइट आधारित डेटा को भूविज्ञान, वर्षा, नदी कटाव और भूकंप के खतरे से जोड़कर जोखिम आकलन किया जाना चाहिए, ताकि समय रहते सुरक्षित प्लानिंग की जा सके।
हिमालय उत्तर-पूर्व की तरफ खिसक रहा

विज्ञानियों एक मुताबिक हिमालय प्रतिवर्ष 40 मिमी उत्तर-पूर्व की तरफ सरक रहा है। बड़ा भूभाग हिमालय के अनुरूप गति कर रहा है। यह खिसकन उत्तर और पूर्व के बीच तिरछी दिशा या 45 डिग्री दोनों के बीच है। वहीं, अध्ययन में शामिल क्षेत्र सिर्फ पूर्व दिशा में खिसक रहा है। यह ढलान के टूटने या जमीन के बहने जैसी स्थिति है।

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