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गुलाम कश्मीर में पाकिस्तानी सेना की क्रूरता पर वैश्विक चुप्पी, मानवाधिकार एक्सपर्ट ने उठाए सवाल

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发表于 2025-10-28 08:37:48 | 显示全部楼层 |阅读模式
  पश्चिमी व इस्लामी देशों पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप (फोटो: रॉयटर्स)





डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गुलाम जम्मू-कश्मीर की घाटियों को खून से लथपथ बताते हुए एक मानवाधिकारी विशेषज्ञ ने सस्ती बिजली, आटा और सम्मान जैसे बुनियादी अधिकारों की मांग कर वहां के प्रदर्शनकारियों की पाकिस्तानी सेना द्वारा हत्या की आलोचना की है। उन्होंने इस क्रूरता पर वैश्विक चुप्पी को लेकर सवाल उठाए हैं और पश्चिमी व इस्लामी देशों पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

टाइम्स ऑफ इजरायल की वेबसाइट पर माइकल अरिआंती के एक ब्लॉग में कहा है, \“जम्मू-कश्मीर संयुक्त अवामी एक्शन कमेटी (जेएएसी) के नेतृत्व में एक हफ्ते से ज्यादा समय से मुजफ्फराबाद, रावलकोट, धीरकोट और मीरपुर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। ये प्रदर्शनकारी सस्ती बिजली, सस्ता आटा और सम्मान की मांग कर रहे हैं। ये बुनियादी अधिकार हैं, फिर भी इनका जवाब गोलियों, कफ्र्यू और संचार व्यवस्था ठप करके दिया जा रहा है।\“


अंतरराष्ट्रीय चुप्पी की आलोचना की

वहां पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों पर अंतरराष्ट्रीय चुप्पी की आलोचना करते हुए अरिआंती ने कहा, \“वहां जो कुछ हो रहा है, वे सिर्फ स्थानीय शिकायतें नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय पाखंड की कहानी है।\“ कुर्द मामलों और मानवाधिकारों के विशेषज्ञ अरिआंती ने कहा, \“हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां हैशटैग कुछ ही घंटों में ट्रेंड करने लगते हैं, लेकिन फिर भी गुलाम जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम नागरिकों के नरसंहार पर कोई आवाज नहीं उठी। चुनिंदा आक्रोश बहरा कर देने वाला है।\“



उन्होंने सवाल किया, एक फलस्तीनी की मौत दुनियाभर में सुर्खियां जाती है, लेकिन मुजफ्फराबाद या धीरकोट में एक कश्मीरी मुसलमान की मौत, एक फुटनोट भर क्यों है? दोनों पीड़ित हैं, दोनों सम्मान की गुहार लगा रहे हैं और फिर भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय तय करता है कि किसकी पीड़ा मायने रखती है। क्या कश्मीरी खून की कीमत कम है? क्या पाकिस्तानी दमन किसी तरह से स्वीकार्य है?
\“इस्लामिक सहयोग संगठन ने एक शब्द नहीं कहा\“

अरिआंती ने कहा कि इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) जम्मू-कश्मीर में कोई घटना होने पर भारत के विरुद्ध बयान जारी करने में बिल्कुल देर नहीं करता, लेकिन गुलाम जम्मू-कश्मीर में हुए नरसंहार के बारे में उसने एक शब्द भी नहीं कहा। वे इमाम, विद्वान, मंत्री कहां हैं जो हर शुक्रवार को गाजा के बारे में गरजते हैं? यह पाखंड जितना शर्मनाक है। उन्होंने यूक्रेन, गाजा और म्यांमार पर बार-बार बयान देने वाले पश्चिमी देशों की चुप्पी पर भी सवाल उठाया।



ब्लॉग में कहा गया है कि पाकिस्तान की लगभग एक-तिहाई पनबिजली पैदा करने वाले गुलाम जम्मू-कश्मीर में निवासी अभी भी अत्यधिक शुल्क चुकाते हैं, जो अक्सर उत्पादन लागत से दस गुना ज्यादा होता है। इस्लामाबाद और इस क्षेत्र का अभिजात वर्ग मुफ्त में बिजली, ईंधन और अनियंत्रित विशेषाधिकारों का आनंद लेते हैं, जबकि स्थानीय लोग 40-50 रुपये प्रति यूनिट की दर से भुगतान करते हैं, जबकि उत्पादन लागत 4-7 रुपये है।



(न्यूज एजेंसी आईएएनएस के इनपुट के साथ)

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