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नक्सलियों की बुलेट को मतदाताओं के बैलेट ने दिया जवाब, जमुई के 10 मतदान केंद्रों में पहली बार हुई वोटिंग

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नक्सल प्रभावित इलाके में वोटिंग। फोटो जागरम



जागरण टीम, जमुई। बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2025 में मतदान शांतिपूर्ण रहा। जमुई के कई ऐसे गांव हैं, जहां पहली बार वोटिंग हुई। माओवाद प्रभावित इन क्षेत्रों में कोई पोलिंग बूथ नहीं बनाया जाता था। गांव के लोग माओवादियों के डर से वोट डालने दूसरी जगह जाते भी नहीं थे, लेकिन इस बार नजारा बदला दिखा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

इन क्षेत्रों में जमकर वोट पड़ी और सुबह से ही लोगों की लंबी कतारें दिखीं। जमुई विधानसभा क्षेत्र के गुरमाहा, चोरमारा, चकाई के बोंगी, बरमोरिया के अलावा सिकंदरा विधानसभा क्षेत्र के दीपाकरहर आदि कई ऐसे बूथ रहे जो कभी माओवाद प्रभावित रहे, वहां दशकों बाद मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया।

लोगों ने अपने गांव में ही वोट डाला। यहां बता दें कि जमुई के खैरा प्रखंड अंतर्गत दीपाकरहर गांव में पहली हिंसक वारदात को माओवादियों ने अंजाम दिया था। 1999 के लोक सभा चुनाव में माओवादियों ने पाेलिंग पार्टी को निशाना बनाया था।
लंबे समय बाद लोकतंत्र का साक्षी बना चकाई का 10 मतदान केंद्र

चंद्रमंडी(जमुई): माओवादियों के गढ़ रहे बिहार-झारखंड सीमा पर स्थित चकाई प्रखंड के 10 गांव में 25 साल बाद बनाए गए मतदान केंद्रों पर सुबह से लेकर शाम तक बीप की आवाज सुनाई देती रही। इसी आवाज को सुनने के लिए पिछले 25 सालों से इलाके के लोग तरसते थे। मंगलवार को दिन-भर ईवीएम मशीन से बीप की आवाज सुनाई देती रही।

इन मतदान केंद्रों को बैलून से सजाया गया था। यह इलाका लंबे समय बाद लोकतंत्र के उत्सव का साक्षी बना। जहां खौफ नाम का कोई चीज नहीं था, जिन इलाकों में 25 साल बाद मतदान केंद्र बना था, उनमें गगनपुर में दो मतदान केंद्र के अलावा राजाडूमर, माझलाडीह, बेहरा, करिझाल, भलुआ, विशोदह, बेंद्रा और गोविंदपुर पिपरा शामिल हैं।

सभी 10 मतदान केंद्र पर उत्साह और उमंग था। बोंगी पंचायत के गगनपुर मध्य विद्यालय में पहली बार दो मतदान केंद्र बनाया गया था। यहां आजादी के बाद से ही मतदान केंद्र नहीं बन रहा था, क्योंकि यह इलाका पूर्व में घोर माओवाद प्रभावित था। अब जब चुनाव आयोग ने यहां मतदान केंद्र बना दिया तो लोगों में खासा उत्साह देखा गया।

जागरण टीम ने गगनपुर स्थित मतदान केंद्र सं. 194, 195 का जायजा लिया। यहां मतदान केंद्रों पर सुबह से ही पुरुष और महिला मतदाताओं की कतार लगी थी। मतदाताओं ने पूछने पर बताया कि यहां पिछले 25 सालों से भी अधिक समय से मतदान केंद्र नहीं था।

गगनपुर के ग्रामीण पप्पू यादव ने बताया कि गगनपुर में इस बार लोग काफी उत्साहित है। यही कारण था कि यहां 65 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया।
25 साल बाद लाल गलियारे में गूंजा लोकतंत्र का उत्सव

झाझा(जमुई): झाझा प्रखंड के नक्सल मुक्त इलाकों में इस बार लोकतंत्र का पर्व एक नए जोश के साथ मनाया गया। 25 साल के लंबे अंतराल के बाद मतदाताओं ने अपने ही गांव के मतदान केंद्र पर मतदान कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी निभाई। जंगल और पहाड़ के बीच स्थित प्राथमिक विद्यालय, माणिकबथान के मतदान केंद्र सं. 226 पर ग्रामीणों ने 25 वर्ष बाद अपने गांव में वोट डाले।

मतदान को लेकर ग्रामीणों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला। सुबह पांच बजे से ही मतदाता कतारबद्ध होकर केंद्र पर पहुंच गए थे। सात बजे मतदान प्रारंभ हुआ और दोपहर दो बजे तक मतदान प्रतिशत 55 प्रतिशत से अधिक हो चुका था।

सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर सीआरपीएफ और बीएसएफ के जवानों ने पूरी चौकसी बरती। सुरक्षा कर्मियों के अनुसार, ग्रामीणों का उत्साह इस बार पहले से कई गुणा अधिक था।

ग्रामीण दामोदर यादव, बड़कू मरांडी, दीना मरांडी आदि ने बताया कि पहले माओवादियों के खतरे के कारण इस केंद्र को बोड़वा मतदान केंद्र में शामिल कर दिया जाता था, जिससे गांव के कई लोग मतदान से वंचित रह जाते थे, लेकिन इस बार निर्वाचन आयोग की पहल से स्थिति पूरी तरह बदली हुई दिखी।

इसी तरह नवीन प्राथमिक विद्यालय, नारगंजो आदिवासी टोला, सामुदायिक केंद्र नरगंजो, जुड़पनिया, बाराकोला और दुधरवा मतदान केंद्रों पर भी मतदाताओं में भारी उत्साह देखा गया।

ग्रामीणों ने बड़ी संख्या में अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इस बार के मतदान में माओवाद का खौफ पूरी तरह गायब रहा। ग्रामीणों के उत्साह और सुरक्षा बलों की मौजूदगी ने साबित कर दिया कि लोकतंत्र की जड़ें अब इन इलाकों में और मजबूत हो चुकी हैं।
कभी गूंजती थी गोलियों की गूंज, अब बज रहा लोकतंत्र का धुन

बरहट(जमुई): कभी नक्सलियों के गढ़ रहे बरहट थाना क्षेत्र के सुदूरवर्ती गांव चोरमारा में मंगलवार को लोकतंत्र की बहार नजर आ रही थी। चोरमारा, गुरमाहा, जमुनियाटांड, अंबा टोला आदि जगहों के मतदाताओं ने प्राथमिक विद्यालय, चोरमारा में उत्साह से अपने मत का प्रयोग किया।

बताया जाता है कि पहले यहां की स्थिति बेहद खराब थी। इन गांवों में लाल आतंक की धमक दिखाई देती थी। ग्रामीणों में भय ऐसा कि घरों में ही दुबके रहते थे। मतदान केंद्र तक जाना और मताधिकार का प्रयोग करना सपने जैसा था, लेकिन अब परिस्थितियां बिल्कुल बदल चुकी हैं।

यहां के मतदाताओं में मतदान को लेकर खासा उत्साह देखने को मिला। 25 साल बाद गांव में मतदान केंद्र बनाए जाने के बाद पहली बार वोट करने पहुंची महिलाएं और युवतियां कतार में सुबह से ही लग गई थीं। धीरे-धीरे पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की भीड़ अधिक देखने को मिली।

आत्मसमर्पण कर चुके माओवादी बालेश्वर कोड़ा की पत्नी मंगनी देवी ने कहा कि मेरे पति मुख्यधारा से भटक गए थे। काफी समझाने के बाद उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया है। प्रशासन द्वारा गांव में सीआरपीएफ कैंप लगाकर ग्रामीणों को माओवाद मुक्त कराने में अहम भूमिका निभाई है।

हम लोग वैसे उम्मीदवार को मत दे रहे हैं जो क्षेत्र में बिजली, पानी, मोबाइल नेटवर्क, शिक्षा सहित अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराएं। माओवाद मुक्त होने के साथ गांव की विकास भी जरूरी है।

वहीं, अर्जुन कोड़ा की पत्नी सरस्वती देवी ने बताया कि पूर्व में मतदान केंद्र की दूरी 25 से 30 किलोमीटर दूर कोयबा में रहने से काफी संख्या में लोग मतदान करने से वंचित रह जाते थे।

गांव में ही मतदान केंद्र बनाए जाने से विकास कार्य करने वाले सरकार को बनाने में अहम योगदान देने का मौका मिला है। 1011 मतदाताओं में से कुल 420 ने मत का प्रयोग किया, जिसमें पुरुष मतदाता 167 और महिला 253 मतदाताओं ने अपना मत का प्रयोग किया।

नक्सलवाद से मुक्त होने के बाद अब गांव का विकास भी जरूरी है। इस दौरान सीआरपीएफ डीआइजी संदीप कुमार, एसपी विश्वजीत दयाल, थानाध्यक्ष कुमार संजीव सहित बड़ी संख्या में अर्द्धसैनिक बल के जवान मौजूद थे।

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