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संकट में पंजाब की धरोहर! PU की स्वायत्तता पर उठे सवाल, मूसेवाला के पिता बोले-हम भारत का हिस्सा नहीं लगते

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发表于 昨天 23:27 | 显示全部楼层 |阅读模式
  

तस्वीर में बलकौर सिंह अपने दिवंगत बेटे पंजाबी गायब सिद्धू मूसेवाला के साथ।



जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। पंजाब यूनिवर्सिटी में सीनेट चुनाव विवाद अब पूरी तरह से राजनीतिक रूप ले चुका है। चुनाव की अधिसूचना पर अड़े छात्रों के समर्थन देने पहुंचे दिवंगत पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला के पिता बलकौर सिंह बोले कि ऐसा महसूस हो रहा है जैसे हम भारत का हिस्सा नहीं हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

उन्होंने कहा कि देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए पंजाब ने हमेशा अपना सर्वस्व न्योछावर किया है, फिर भी पंजाब के साथ उपेक्षा का व्यवहार किया जा रहा है। पीयू सिर्फ एक शैक्षणिक संस्था नहीं, बल्कि पंजाब की अस्मिता और स्वाभिमान का प्रतीक है, जिसकी रक्षा हर पंजाबी का फर्ज है।  

वहीं, मोर्चा का साथ देने के लिए पहुंचे कांग्रेस नेता सुखपाल सिंह खैरा कहा कि यह केंद्र सरकार की साजिश है, जिसने विद्या की परंपरा को बाधित किया है। पंजाब की पहचान और सभ्यता से 133 साल पुरानी यह यूनिवर्सिटी गहराई से जुड़ी है। उन्होंने कहा कि खुद सरकार ने यह स्वीकार किया था कि 28 अक्टूबर को जारी की गई अधिसूचना गलत थी।

हालाकिं केंद्र सरकार ने बाद में सीनेट को पहले जैसे बहाल रखने का निर्णय लिया। इसके बाद पीयू प्रशासन की ओर से चांसलर को फाइल भेजे दी है, लेकिन फाइल भेजे जाने के बावजूद भी नया नोटिफिकेशन जारी नहीं किया गया।

उन्होंने आरोप लगाया कि यह सब केंद्र की सोची-समझी योजना का हिस्सा है, जो राज्यों के अधिकारों को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। खैरा ने कहा कि नई शिक्षा नीति अल्पसंख्यक राज्यों के हित में नहीं है और पंजाब सरकार को इसके खिलाफ ठोस रुख अपनाना चाहिए।

पंजाब के पूर्व मंत्री ने सरदार गुरकीरत सिंह कोटली ने कहा कि यह सिर्फ पंजाब यूनिवर्सिटी का नहीं, बल्कि पूरे पंजाब का मुद्दा है। हमें सभी को पार्टी लाइन से ऊपर उठकर इस मोर्चे का समर्थन करना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि पहले तो सीनेट सदस्यों की संख्या घटाने की नोटिफिकेशन जारी की गई, फिर दबाव में उसे वापस ले लिया गया, लेकिन अब तक कोई नया नोटिफिकेशन नहीं आया है।

पूर्व मंत्री ने कहा कि कांग्रेस पार्टी पिछले 11 साल से पीयू की स्वायत्तता और पंजाब के हक की लड़ाई लड़ रही है, लेकिन केंद्र सरकार की मंशा साफ है, संघ से जुड़े लोगों को कुलपति बनाकर विश्वविद्यालय पर कब्जा जमाने की कोशिश की जा रही है।

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