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Delhi Bomb Blast: देवबंद से निकला मौलवी इरफान कश्मीर में डी-रेडिकलाइजेशन के नाम पर युवाओं को बना रहा था जिहादी

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मौलवी इरफान अहमद वागे की करीब तीन वर्ष पहले ही उसकी शादी हुई है।



नवीन नवाज, जागरण, श्रीनगर। दिल्ली लाल किला बम विस्फोट में लिप्त मौलवी इरफान अहमद वागे उत्तर प्रदेश के देवबंद से ही मुफ्ती बनकर निकला था। वह कश्मीर में उन मौलवियों की जमात में शामिल था जिनका सहयोग प्रदेश प्रशासन वर्ष 2019 के बाद स्थानीय युवाओं का डी-रेडिकलाइजेशन कर, उन्हें आतंकी व जिहादी तत्वों से बचाने के लिए उन्हें इस्लाम की सही व्याख्या से अवगत कराने में ले रहा है।  विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

पुलिस की बैठकों में भी डी-रेडिकलाइजेशन पर सुझाव देने वाला मौलवी इरफान दरअसल गुपचुप तरीके से स्थानीय युवाओं को जैश-ए-मोहम्मद, तालिबान और अल-कायदा से जोड़ने के लिए उनके भीतर कट्टर जिहादी मानसिकता पैदा कर, उन्हें रेडिकलाइज करने में जुटा था।  
नौगाम मस्जिद का इमाम था मौलवी इरफान

मौलवी इरफान अहमद वागे को जम्मू कश्मीर पुलिस ने नौगाम श्रीनगर में 16 अक्टूबर को मिले जैश ए मोहम्मद के पोस्टरों की जांच के सिलसिले में 18 अक्टूबर 2025 को नादीगाम शोपियां स्थित उसके घर से गिरफ्तार किया था। वह नौगाम के नाइकबाग स्थित मस्जिद का इमाम था। मामले की जांच में जुटे अधिकारियों ने बताया कि मौलवी इरफान अहमद वागे सात भाई-बहन हैं और करीब तीन वर्ष पहले ही उसकी शादी हुई है।  
देवबंद से लेकर आया जिहादी मानसिकता

उसने वर्ष 2017-18 के दौरान देवबंद, सहारनपुर के दारुल उलूम में चला गया और वहां से मुफ्ती बनकर लौटा। उससे पूछताछ के दौरान पता चला है कि वह देवबंद से ही अपने साथ जिहादी मानसिकता लेकर आया था। वह नौगाम की मस्जिद में वह कोरोना काल से ही काम कर रहा था और इसके अलावा वह कुछ स्थानीय स्कूलों में भी इस्लाम पढ़ाता है।  
ऑनलाइन लेक्चर भी देता था मौलवी

अधिकारियों ने बताया कि मौलवी इरफान अहमद इस्लामिक विषयों पर ऑनलाइन लेक्चर भी देता था। वह यहां दिखावे के लिए सार्वजनिक तौर पर हमेशा हिंसा की निंदा करता था और कहता था कि इस्लाम में किसी इंसान के कत्ल की इजाजत नहीं है। वह कश्मीर में आजादी और अलगाववाद के नाम पर आतंकी हिंसा का विरोध करते हुए कहता था कि यह कोई जिहाद नहीं है बल्कि यह सब इस्लाम के खिलाफ है।  
पुलिस बैठकों में भी अकसर शामिल होता था

वह स्थानीय युवाओं को कट्टरपंथी ताकतों से बचाने, उन्हें आतंकी बनने से रोकने के लिए पुलिस द्वारा आयोजित बैठकों में अक्सर शामिल होता था। वह इन बैठकों में कश्मीर में पाक कुरान की रोशनी में आतंकी हिंसा और इसका समर्थन करने वालों को इस्लाम का दुश्मन बताता था।

वह उन मौलवियों में शामिल था जो यहां जिहादी मानसिकता के शिकार हुए युवाओं को इस्लाम की शिक्षाओं और सिद्धांतों से अवगत कराते हुए उन्हें अहिंसा, सच्चाई, वतनपरस्ती और इंसानियत का पाठ पढ़ाते हैं। इसलिए कभी किसी को उसकी गतिविधियों पर संदेह नहीं हुआ।  
मौलवी की गतिविधियों पर कभी नहीं हुआ संदेह

नाइकबाग मस्जिद कमेटी प्रधान फारूक अहमद ने कहा कि हमें भी कभी नहीं लगा कि मौलवी इरफान अहमद किसी गलत कार्य में लिप्त हो सकता है। वह यहां नमाज पढ़ाता था। वह जब कभी भी खुतबा देता था तो हमेशा हिंसा काे गलत ठहराता था।

वह कश्मीर में जिहाद का नारा देने वालों को कश्मीर का सबसे बड़ा द़श्मन बताता था और हमेशा सभी को आपसी सद्भाव के साथ रहने और सामाजिक बुराईयों से बचने की ताकीद करता था। वह अपने कमरे में भी किसी को नहीं आने देता था।  
वर्ष 2021 में डॉ मुजम्मित से मिला था मौलवी

मामले की जांच में जुटे सूत्रों ने डॉ. अदील, उमर और डॉ. मुजम्मिल के साथ उसके रिश्तों के बारे में पूछे जाने पर बताया कि मौलवी इरफान अहमद की डॉ. मुजम्मिल से पहली मुलाकात वर्ष 2021 में शेर-ए-कश्मीर आयुर्विज्ञान संस्थान सौरा में हुई थी। उसके बाद से दोनों लगातार आपस में संपर्क में रहे हैं।

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